मुख्तार अंसारी यूपी का बाहुबली नहीं बब्बर शेर है जिसने कल योगी,मीडिया को थूका हुआ चटा दिया
मुख़्तार अंसारी मुजरिम भी नहीं बल्कि मुलजिम हैं, हिंदी में कहें तो अभियुक्त हैं अपराधी नहीं हैं।

यूपी में सत्तासीन दल के कई नेता खुले मंच से चटखारे लेकर अपनी मंशा ज़ाहिर करते रहे कि गाड़ी 'पलट' जाती है। ऐसा क्यों है? क्या क़ानून और न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है? मुख़्तार अंसारी 15 वर्ष से भी अधिक समय से जेल में हैं और अदालत के ट्रायल का सामना कर रहे हैं।
लेकिन सत्ताधारी दल के नेताओं ने तो सरकार में आते ही अपने ऊपर लगे मुक़दमों का ट्रायल कराना भी जरूरी नहीं समझा, और अपने ऊपर लगे मुकदमे खुद ही 'जज' बनकर वापस कर लिए। लेकिन यह 'प्रावधान' मुख़्तार अंसारी के लिए नहीं है, एक तो वो 'मुख़्तार' हैं, दूसरा वे सिर्फ विधायक हैं।
अगर मुख्यमंत्री होते तब शायद वे भी खुद पर लगे मुकदमे खुद ही जज बनकर वापस कर लेते। मुख़्तार के पास सिर्फ न्यायपालिका है, जिसका वे सामना भी कर रहे हैं। लेकिन उन्हें क्या कहें जिन्हें अदालत पर भरोसा नहीं, और अदालत के निर्णय से पहले ही मुख़्तार की गाड़ी 'पलटने' का इंतज़ार कर रहे हैं? मुख़्तार अंसारी अमर नहीं हैं, मुख़्तार अंसारी फरिश्ता भी नहीं हैं, जो हर गुनाह से पाक हों। और यह भी सच है कि फिलवक़्त मुख़्तार अंसारी मुजरिम भी नहीं बल्कि मुलजिम हैं, हिंदी में कहें तो अभियुक्त हैं अपराधी नहीं हैं।
मुख़्तार की 'गाड़ी पलटने' का इंतज़ार अदालत को ताक पर रखने जैसा है। गाड़ी पलटना न्यायपालिक वजूद को सीधी चुनौती है।
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