करोना के कारण सबसे ज़्यादा संकट में है दिहाड़ी मज़दूर
बड़े शहरों में लॉकडाउन की वजह से जो हालत हैं कमोबेश यही हालत छोटे शहरों में भी है. हर किसी को आने वाले दिनों की चिंता सता रही है.

कलावती देवी अपने झोपड़ीनुमा घर के बाहर सिर पर हाथ रखे आने-जाने वाले लोगों को काफी देर से देख रही है. मानो उसे इस बात का इंतजार है कि आने वाला कोई व्यक्ति लॉकडाउन समाप्त होने की खबर दे, जिससे वह कबाड़ चुनने निकल सके और घर में बीमार पड़े पति के लिए दवा ला सके और घर का चूल्हा भी जला सके. लेकिन कलावती देवी जैसे लाखों लोगों के लिए खबर अच्छी नहीं है क्योंकि भारत में 21 दिनों की लॉकडाउन लागू हो चुका है.
यह हालत पटना शहर के व्यस्तम इलाके आयकर गोलंबर के कुछ ही दूर पर मंदिरी इलाके में नाले के किनारे अपने घर बनाकर रह रहे केवल कलावती की नहीं है, बल्कि यहां कई ऐसे गरीब और मजदूर लोगों का घर है, जो रोज कमाई कर अपना परिवार चलाते हैं. कलावती को अपने से अधिक चिंता अपने 65 साल पति की है, जो बीमार हालत में अपने घर से निकल नहीं पा रहे हैं. कलावती कहती हैं, "हम क्या करें..खाने-पीने के लाले पड़े हुए हैं... कबाड़ बेचने कहां जाएं."
कलावती सिर्फ एक उदाहरण है. पटना में ऐसे कई गरीब हैं, जिनके पेट के लिए कोरोना की बीमारी आफत बनकर टूटी है. पटना के बांकीपुर क्लब के पास रहने वाले रमेश कुमार रिक्शा चलाते हैं. आज घर के बाहर बच्चों को उछलते-कूदते देखकर समय काट रहे हैं. रमेश के कहते हैं, "गांव से पटना रिक्शा चलाने यह सोचकर आए थे कि यहां ज्यादा कमा लेंगे, तो जीवन गुजर जाएगा, लेकिन अब लोग कह रहे हैं कि अप्रैल महीने तक यही स्थिति रहेगी." अब रमेश ना घर जा पा रहे हैं और ना ही यहां रिक्शा चला पा रहे हैं. वे कहते हैं, "जो जमा पैसा था, उससे तो दो-चार दिन चल जाएगा, लेकिन उसके बाद क्या होगा? कोई उधार देने वाला भी नहीं है, जिससे मांगकर काम चला सके."
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