अमेरिकी सांसद ने "भारत-विरोधी" प्रस्ताव पेश किया
डेमोक्रेटिक दल की नेता इलहान उमर ने अमेरिकी सदन में एक प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें भारत को ऐसे देश के रूप मे नामित करने के लिए कहा गया है जहां धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के कथित उल्लंघन को लेकर स्थिति चिंताजनक है

नई दिल्ली: अपने भारत विरोधी रुख़ को बनाए रखते हुए अमेरिका में डेमोक्रेटिक दल की नेता इलहान उमर ने अमेरिकी सदन में एक प्रस्ताव पेश किया है। बीबीसी की रिपोर्ट में यह सूचना देते हुए बताया गया है कि यह प्रस्ताव अमेरिकी विदेश मंत्री को भारत को ऐसे देश के रूप मे नामित करने के लिए कहा है जहां धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के कथित उल्लंघन को लेकर स्थिति चिंताजनक है।
इलहान उमर का भारत के प्रति यह रुख़ नया नहीं है। इससे पहले उन्होंने इसी साल अप्रैल महीने में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर का दौरा किया था। उनका ये दौरा सुर्खियों में रहा था। भारत ने इलहान के इस दौरे की काफी आलोचना की थी। सांसद रशीदा तालिब और जुआन वर्गस ने भी प्रस्ताव को सह-प्रस्तावित किया है। इस प्रस्ताव में बाइडन प्रशासन से अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया गया है। आयोग बीते तीन सालों से भारत को ‘धार्मिक आज़ादी को लेकर विशेष चिंता वाला देश” घोषित करने की मांग की है। मंगलवार को पेश किए गए इस प्रस्ताव को आवश्यक कार्रवाई के लिए सदन के विदेश मामलों की समिति के पास भेजा गया है।
इस से पहले इलहान की पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की यात्रा पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने नाराज़गी जताई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसे भारतीय क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन बताया था। उन्होंने कहा, "उन्होंने जम्मू-कश्मीर के एक ऐसे हिस्से का दौरा किया है, जिसपर वर्तमान में पाकिस्तान का अवैध क़ब्ज़ा है। अगर कोई राजनेता अपनी संकीर्ण मानसिकता की राजनीति करना चाहती हैं तो ये उनका काम हो सकता है लेकिन हमारी क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है।"
हिजाब पहनने वाली इलहान उमर ने अपना बचपन कीनियाई शरणार्थी शिविर में बिताया था जहां उनका परिवार सोमालिया से माइग्रेट करके आया था। उन्होंने इस शरणार्थी शिविर में चार साल बिताए। फिर, साल 1997 में एक स्पांसर की मदद से वह अमेरिकी राज्य मिनेसोटा पहुंचीं।
साल 2016 में, 36 वर्षीय इलहान उमर पहली सोमाली-अमेरिकन कांग्रेसवुमेन बन गईं। अपनी जीत के बाद उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ''यह जीत उस आठ साल की बच्ची की है, जो शरणार्थियों के कैंप में थी। यह जीत उस लड़की की है, जिसे ज़बरदस्ती कम उम्र में ही शादी के लिए मजबूर किया गया था। यह जीत उन सभी की है जिन्हें सपने देखने से रोका गया।"
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