इस देश की बर्बादी में सबसे बड़ा हाथ है "ज़िद और ईगो" का
नोटबन्दी के दो दिन बाद ही पता लग गया था कि ये गलत फ़ैसला है लेकिन ज़िद और ईगो ने वापस पलटने न दिया

नोटबन्दी के दो दिन बाद ही पता लग गया था कि ये गलत फ़ैसला है लेकिन ज़िद और ईगो ने वापस पलटने न दिया, समय रहते गलती मान लेते तो इमेज को थोड़ा नुकसान होता मगर देश की अर्थव्यवस्था बच जातीं
अचानक सम्पूर्ण लॉकडॉउन किया सिर्फ चार घण्टे की मोहलत देकर, मज़दूर हज़ारो किलोमीटर चलकर पैदल आ रहे थे, रास्ते मे मर खप गए, छोटे छोटे बच्चे सड़को पर चल रहे थे, बाप अपने बच्चे को गोदी लिए छोटी बेटी डोरी से बंधी पानी की दो बॉटल गले मे टाँगे और बीवी सर पर बैग रखे मई की धूप में चलती आ रही थी, लेकिन बंदे को तरस नही आया, एकबार भी नही सोचा कि थोड़ी सी छूट दे दे,
ईगो और ज़िद के चलते आजतक कुबूल नही किया कि सम्पूर्ण लॉकडॉउन सही नही था।
आज किसान प्रदर्शन कर रहे है ताकत के बल पर बिल पास करवा लिया, एकबार भी ये नही सोचा कि इतना उतावलापन क्यो है, किसान को अपनी मर्ज़ी का फैसला करने दो,
इस ठंड में वाटर कैनन का इस्तेमाल आँसू गैस, ये सब अमानवीयता है, ये हठ, ये ज़िद, ये ताकत, ये घमंड इस देश को ले डूबेगा। डंडे के बल पर चीज़े लागू तो हो जाती है पर वो कामयाब नही होती,
फ़ैसले अच्छे बुरे किसी से भी हो सकते है,जिसको देश और जनता से प्यार है वो अपनी छवि से ज़्यादा देश औऱ नागरिको के हितों को सोचता है ऐसे में वो गलत फैसला बदल देता है लेकिन कुछ लोग हठी होते है
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