प्रेम है या सिर्फ दीवानगी?
पता चलता है रिश्ते का हनीमून पीरियड गुज़र जाने के बाद

प्रेम की शुरुआत में हम उसे देखते ही दीवाने हो जाते हैं। वह लड़के को दुनिया की सबसे अच्छी लड़की लगने लगती है और लड़की को दुनिया का सबसे हैंडसम लड़का। वे एक दूसरे को पूर्ण पाते हैं। वे एक ऐसा जोड़ा खुद को मानने लगते हैं जो शायद शिरी-फरहाद या लैला-मजनू के बाद धरती पर अवतरित हुआ है। प्रेम अपने चरम पर होने पर अपने प्रेमी के प्रति सिर्फ अच्छा ही महसूस कर सकता है और कुछ नहीं, यदि कोई उसकी बुराई करता है तो हमें लगता है कि दोष बुराई करने वाले कि दृष्टि में हैे हमारे प्रेमी या प्रेमिका में नहीं। वह तो सब दोषों से परे है 'कोई हूर या कोई फरिश्ता...'। दोनों युगलों को लगता है कि उन्हें वह मिल गया है जिसकी उन्हें तलाश थी, वही जो दुर्भाग्य से दुनिया में कम ही लोगों को मिलता है- एक सच्चा प्रेमी या प्रेमिका। उन्हें लगता है कि उनका यह प्रेम अमर है और यदि वे हिन्दू हैं तो कहते हैं कि सातों जन्म हम साथ रहेंगे और यदि ईसाई या मुस्लिम होते हैं तो ता-क़यामत साथ देने का वायदा करते हैं और ये भी कसमें खाते हैं कि जन्नत में भी साथ रहने की वे अर्जी दाखिल करेंगे खुदा से।
...विवाह की वास्तविक दुनिया में अब आपका स्वागत है प्रिय हसीन युगलों। विवाह की इस दुनिया में खाने में बाल आने पर झगड़े होने लगते हैं। वही बाल जिनके साए में सोकर ज़िन्दगी बिताने के गाने आशिक़ गाता था। चाय के मग पर लगे लिपिस्टिक के निशान को सहेज कर रखने वाले दीवाने को अब वही निशान स्वच्छता अभियान में लगा एक धब्बा नज़र आता है। प्रेमिका की जूतियों को उठाकर चलने वाले उस आदर्श प्रेमी को तब गुस्सा आजाता है जब पत्नी की सैंडिल उसके जूतों के ऊपर रखी होने की वजह से उसकी पोलिश खराब कर देती हैं। हमेशा उसके आगे पीछे घूमने से अच्छा अब उसे पति का काम या नौकरी पर जाना और कुछ कमा कर लाना लगता है। दीवानेपन की मदहोशी अब लापरवाही लगने लगती है... अनंत शिकायतें, अनंत बदलाव। दोनों भौचक्के, दोनों परेशान। दोनों समझ नहीं पाते कि आखिर हो क्या रहा है? प्रेमी प्रेमिका से सिधे शत्रुओं में परिवर्तन! है ईश्वर! यह क्या हुआ? किसकी हमारे प्रेम को नज़र लग गई? हमें भी क्यों अपनी समस्याओं का हल विश्व के अधिकांश जोड़ों की तरह तलाक़ में नज़र आने लगा है? कोई बताए तो कि आखिर हुआ क्या है यह हमारे साथ...प्लीज?
ईश्वर की बनाई इस दुनिया में अगर प्रेम की दीवानगी अनंत काल या जीवनभर तक चलती तो क्या होता? क्या इंसान कुछ और कर पाता सिवाय इश्क़ फरमाने के? राजनीति, दर्शन, धर्म, समाज, विज्ञान आदि का क्या होता। परिवार को यह जोड़ा कैसे संभालता और बच्चों की परवरिश कैसे होती। दुनिया पूरी तरह थम जाती। कोई क्रांति, कोई विकास और कोई भी बदलाव कभी नहीं होता। शायद हम अब भी पाषाण युग में ही जी रहे होते।
इस समस्या का क्या हल हो कि हमारा प्रेम सदा क़ायम रहे? इसका हल इसमें है कि हम सब यह समझ लें कि प्रेम, दीवानगी और आकर्षण से अलग चीज है। प्रेम तब शुरू होता है जब आकर्षण खत्म हो जाता है। यह एक भ्रम है कि प्रेम की दीवानगी अनंत काल तक चलेगी... नहीं, वह कुछ समय तक केवल आपको मिलाने के लिए ईश्वर का प्रयोजन है इस दुनिया को आगे बढ़ाने का और आपकी दीवानगी को खत्म करना भी उसका प्रयोजन है इस दुनिया को सुचारू तरीके से चलाने का। प्रेम की दीवानगी का यह समय 3 माह से 3 साल तक चल सकता है। इसी को रिश्ते का हनीमून पीरियड कहते हैं। इस दौरान अधिकांश जोड़ें अपनी संतति उत्पन्न करने के लिए संभोग कर चुके होते हैं और वे अपनी संतति को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद शुरू होता है प्रेमियों का एक दूसरे के असली रूप से सामना।
मैं आपको सच बताऊँ तो दीवानगी वाला प्रेम सच में प्रेम है ही नहीं। प्रेम तो वह है जो खुमारी उतरने के बाद हो। उसके बाद भी रहे जब हम एक दूसरे की कमियों को जान और समझ लें। उसके बाद भी रहे जब युगलों को सेक्स की आवश्यकता ही महसूस ना हो। उसके बाद भी रहे जब हमारे चेहरे झुर्रियों से भर जाएं और आंखों को सब धुंधला धुंधला दिखे...।
याद रखिए प्रिय पाठकों- "दीवानगी तो मूर्ख भी कर सकते हैं और करते हैं, लेकिन प्रेम तो केवल समझदारों के ही बस का काम है।"
वेबसाइट पर advertisement के लिए काॅन्टेक्ट फाॅर्म भरें
अन्य वीडियो