इंटरनेट पर प्राइवेसी ?
जिस फोन में वाट्सअप, फेसबुक वगैरह चलाते हों संभव हो तो उसमें कॉन्टेक्ट सेव ना करें, ना ही पर्स्नल डाटा रखें और ना ही उससे पेमेंट करेँ। पेमेंट के बाद ब्राउजर (खास तौर पे गूगल क्रोम) आपका कार्ड डिटेल सेव करने को पूछता है तो No कर दें।

ऑटोमेटिक सिंक को हमेशा ऑफ़ रखें। लेपटॉप से सोसल मीडिया चलाने वाले लोग इनकोग्निटो का इस्तेमाल करेँ। फेसबुक को Logged-in छोड़ने की बजाय हर बार लॉगिन लॉगआउट करें। गूगल क्रोम में लॉगिन ना करेँ। गूगल और फेसबुक दोनों ही आपकी की लोकेशन हिस्ट्री से लेके सारी जानकारी इकठ्ठा करते हैँ वो भी तब जब आप इन ऐप को प्रयोग भी नहीं कर रहे होते हैँ।
यदि आप एप्पल का iphone चलाते है तो iOS 14.3 अपडेट इनस्टॉल करले इसमें हर ऐप को सिर्फ उसी फोटो, डाटा को यूज करने की इजाजत देने की फेसिलिटी है जिसकी जरुरत हो, बाकी डाटा को एप्स ऑटोमेटिक यूज नहीं कर सकते। फेसबुक ने इसका बहुत विरोध किया लेकिन एप्पल ने फिलहाल अभी थोड़ा प्राइवेसी को बेहतर रखा है। (कब तक वो पता नहीं)
अब कानूनी पहलू समझिये :
1.) इस बारे में भारत में क़ानून हैँ लेकिन सरकार लागू नहीं कर रही है। भारत के लोगों का डाटा देश की एक संपत्ति है, इसको एक विदेशी कंपनी यहाँ से बटोर के दूसरी कंपनियों को बेच रही है और भारत सरकार को टैक्स भी नहीं दे रही।
2.) एक व्यक्ति की जानकारी बिना उसकी इजाजत के किसी अन्य से साझा करना "मौलिक अधिकारों" का हनन है।
3.) जो व्यक्ति हिंदी पढ़ना नहीं जानता उससे सारे एप्स इंग्लिश में टर्म-कंडीशन ok/agree करवा के जबरिया सहमति ले रहे ये भी गलत है।
4.) दो पार्टी के बीच हुए किसी भी करार की कोर्ट /क़ानून में कोई वैधता नहीं होती यदि एक पार्टी को उस करार का मतलब ना समझाया गया हो।
5.) सरकारें इसका विरोध नहीं करेंगी क्योंकि हर डाटा सेव करने वाली कम्पनी को भारत सरकार की ख़ुफ़िया एजेंसियों (CBI, RAW, Police) से ये जानकारी जरुरत पढ़ने पे साझा करने का क़ानून है। तो कोई भी मौजूदा सरकार इसको अपने विपक्षियों के खिलाफ आसानी से प्रयोग कर सकती है।
नोटबंदी से आपका पैसा बैंक में गया और 25000 से ऊपर का हर ट्रांजेक्शन चेक से करने पे पूरा फाइनेंसियल सिस्टम केंद्र के नियंत्रण में आ गया। GST के बाद राज्य कर (State Tax) हट गए और सारा राजस्व केंद्र के कंट्रोल में आ गया। रिलायंस के Network-18 में पैसा लगाने के बाद मीडिया का रिमोट एंटील से चलता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस तो राजयसभा की एक सीट में कंट्रोल हो जाते हैँ। पर्स्नल जानकारी पहले आधार के नाम पे छीननी थी जो बच गयी सो अब इन कंपनियों के मध्यम से छीन लेंगे। बताओ भाई अब भी तुम्हारे जीवन में कोई स्वतंत्रता बची है ?
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