विमर्श

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शुरुआत में डिनायल मोड होता है, जब धीरे-धीरे कोई भी बीमारी अपने पैर पसारती है। शुरुआत में लोगों को लगता है कि निपट लेंगे इससे भी, या हमें कुछ नहीं हो सकता।

अस्पताल और श्मशान में फ़र्क़ मिट गया है। दिल्ली और लखनऊ का फ़र्क़ मिट गया है।अहमदाबाद और मुंबई का फ़र्क मिट गया है। पटना और भोपाल का फ़र्क़ मिट गया है।

जिस समय बाबरी मस्जिद को ढ़हाने का भीषण अपराध किया जा रहा था उसी समय यह नारा भी लग रहा था "ये तो केवल झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है". बाबरी मस्जिद अभियान काफी लंबे समय तक चला था. इस दौरान रथयात्राएं निकलीं, खून-खराबा हुआ, एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत फैलाई गई और पूरे देश को धर्म के आधार पर बांट दिया गया.

देश में अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के खिलाफ जिस तरह की हिंसा हो रही है, वह हमारे संविधान में निहित समानता और बंधुत्व के मूल्यों के लिए खतरा है। आज बहुवाद और कमजोर वर्गों के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

शचीरानी गुर्टू ने जैनेंद्र से एक साक्षात्कार में पूछा था कि अगर महादेवी माँ और गृहिणी होती तो ? जैनेंद्र भी जवाब में कहते हैं कि तब उनकी कविता इतनी सूक्ष्म, गूढ या जटिल न होती, प्रकृत होती। सहज होती।

अमरीका ने दो सौ साल तक भारत को ग़ुलाम बनाए रखा। क्या आपने ऐसा कहा है? ट्विटर पर लोग आपके बयान के वीडियो को ट्वीट कर हंस रहे हैं। मैं खुलेआम कहता हूँ कि आपने सही कहा है। मैं आपके साथ हूं। हंसने वाले हंसते रहें, लेकिन मैं आपके साथ हूं।

वीमन्स पर तो सभी का कुछ न कुछ ओपिनियन होता है, अरे भई ओपिनियन देना मस्ट है सब बोलो कुछ न कुछ वीमन्स को, नहीं तो वे कैसे जियेंगी बेचारी।